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क्या अठाइस मौतें दिला पाएँगी जाटों को आरक्षण ?

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जग मोहन ठाकन, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक , सर्वोदय स्कूल के पीछे , सादुलपुर , चूरू, राजस्थान . पिन ३३१०२३ .मोब .- ७६६५२६१९६३ .

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हरियाणा से लौटकर

जग मोहन ठाकन

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क्या अठाइस मौतें दिला पाएँगी जाटों को आरक्षण ?

पैंतीस हज़ार करोड़ की संपत्ति स्वाहा , अठाइस जिंदगियाँ खाक ,200 से अधिक जखमी और सदा के लिए जातिगत विद्वेष | यही है हरियाणा में दस दिन चले जाट  आरक्षण आंदोलन का लेखा जोखा | आखिर क्यों सुलगा हरियाणा ? क्यों  सरकार  रही बेखबर  ? किसको क्या मिला ? ये वो तमाम प्रश्न हैं , जो हर  किसी मन को उद्वेलित करते हैं | इंनका उत्तर जानने के लिए हमे झांकना  होगा दो वर्ष पूर्व के घटनाक्रम के भीतर  | पिछले 2014 के लोकसभा  आम चुनाव से ठीक पहले काँग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में लामबंध करने के लिए  मार्च , 2014 में हरियाणा समेत नो राज्यों के जाटों को ओ बी सी श्रेणी में शामिल किया था | हालांकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाटों को ओ बी सी श्रेणी में मानने से इंकार कर दिया था  , परंतु तत्कालीन  यू पी ए सरकार ने चार मार्च ,2014 को जाटों को ओ बी सी श्रेणी में सम्मिलित करने का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया | बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च ,2015 में यू पी ए सरकार के इस  नोटिफ़िकेशन को निरस्त कर दिया |

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जाटों के पैरों तले की जमीन खिसका दी | जाटों के जो बच्चे ओ बी सी श्रेणी के तहत 2014 के बाद विभिन्न सरकारी नौकरियों में चयनित हो चुके थे और नौकरी ग्रहण करने का इंतजार कर रहे थे , उनकी आशाओं पर बाढ़ की तरह पानी फिर गया |इस एक झटके ने बेरोजगार जाट  युवाओं की नौकरी की आस धूमिल कर दी |  इन्दिरा साहनी केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो खुली प्रतियोगिता में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ मेरिट में बराबरी के रैंक  पर रहते हैं , उन्हें आरक्षित पदों की बजाय सामान्य श्रेणी में समायोजित किया जाए  | और  आरक्षित श्रेणी की सीटों को तो उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिये जो आरक्षित वर्ग में हैं तथा जिनकी मेरिट सामान्य श्रेणी के कट आफ मार्क्स से नीचे प्रारम्भ होती है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षित श्रेणी के लोगों को डबल बेनीफिट  मिलने लगा | उस श्रेणी के होशियार बच्चे तो  जनरल श्रेणी में समायोजित होने लगे तथा निम्न मेरिट वाले बच्चे अपनी अपनी आरक्षित श्रेणी एस सी /एसटी /ओ बी सी में स्थान पाने लगे | इसका नुकसान सामान्य श्रेणी को सीधा यह हुआ कि  आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अपनी आरक्षित सीटों से अधिक सीटों पर चयनित होने लगे और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों का दायरा सिमट गया | जब जाटों ने देखा कि उनके सम वर्गीय जातियाँ यथा यादव , गुर्जर ,सैनी आदि डबल फायदा उठा रहे हैं और सामान्य श्रेणी में अन्य उच्च जातियाँ जो आर्थिक , सामाजिक व शैक्षणिक रूप से जाटों से ऊपर एवं समृद्ध  हैं उन्हें मेरिट में नहीं आने दे रही हैं , तो बेरोजगार जाट  युवाओं के मन में   कुंठा घर कर गई | यही कुंठा ग्रस्त युवा येन केन प्रकारेण आरक्षण पाने को आतुर हो उठे |

किसान नेता एवं हरियाणा राज्य पशु चिकित्सा सहायक संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर बलबीर सिंह कहते हैं कि “भले ही जाटों की स्थिति आज से पचास वर्ष पूर्व कृषि जोत अधिक होने के कारण थोड़ी मजबूत रही हो , परंतु वर्तमान में कृषि जोत में हुए पीढ़ी  दर पीढ़ी बँटवारे के कारण आम जाट परिवार के लिए खेती घाटे का सौदा बन कर रह गई है |आज हरियाणा में प्रति परिवार औसतन छह एकड़ कृषि भूमि है , जिसमे सवा लाख से लेकर अधिकतम तीन लाख रुपये प्रतिवर्ष पैदावार ( बचत नहीं ) बड़ी मुश्किल से हो पा रही   है | खेती के इस  घाटे के कार्य ने जाटों  की आर्थिक स्थिति धराशायी कर दी है | डॉक्टर बलबीर सिंह  प्रश्न करते हैं कि जब ओ बी सी में आय की अधिकतम सीमा छह लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के क्रीमी लेयर की ओ बी सी में प्रविष्टि पहले ही रोक दी गई है तो यह बात कहकर कि जाट समृद्ध जाति है , कैसे  छह लाख से कम आय वाले जाटों को ओ बी सी में शामिल करने से रोका जा रहा है ? अगर कोई जाट क्रीमी लेयर में आता है तो वो स्वतः ही ओ बी सी का हक खो देगा , फिर क्यों जाटों की  झूठी मजबूत आर्थिक स्थिति को बार बार  उछाल कर आरक्षण में  बाधा बनाया जा रहा है ?”

हालांकि पिछले बीस वर्षों में जाटों में शिक्षा का काफी प्रसार हुआ है , परंतु  अधिकतर जाट  विद्यार्थी बी ए /एम ए करके भी अनुपयोगी शिक्षा के कारण  बेरोजगारी के भँवर में फंस कर रह गए हैं | जाट युवा चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हो ,आज भी अन्य जातियों के लोग उन्हें सोलह दूनी आठ कहकर मज़ाक उड़ाते हैं |बढ़ती बेरोजगारी के कारण जाट युवाओं के रिश्ते तक नहीं हो पा  रहे हैं | जिसके कारण जाट युवाओं द्वारा दूसरे प्रदेशों बिहार ,आसाम , केरल आदि से अपने सामाजिक स्तर से भी कम स्तरीय समाज की लड़कियां खरीद फरोख्त करके शादी करने को बाध्य हो रहे हैं |आज हरियाणा के हर गाँव में पाँच से दस घरों में इस प्रकार के मामले मिल रहे हैं | नौकरी नहीं तो शादी नहीं , ने जाटों की सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस कर दिया है | आर्थिक रूप से वर्तमान में जाटों की कमर टूट चुकी है , कृषि भूमि बैंकों के पास ऋण लेकर गिरवी रख दी गई है और आए दिन किसान आत्महत्त्या का सिलसिला आगे बढ़ता जा रहा है |

हालांकि आरक्षण में राजनीतिक स्थिति का आंकलन कहीं भी  अनिवार्य नहीं है , परंतु जाट आरक्षण न मिलने के पीछे जाटों को राजनीतिक रूप से सुदृढ़ दर्शाना भी एक महत्वपूर्ण कारक है | हरियाणा में अब तक बने  दस मुख्यमंत्रियों में से केवल पाँच व्यक्ति ही जाट जाति से रहे हैं |शेष पाँच अन्य जातियों से रहे हैं | जाटों में बंसीलाल , देवी लाल , ओमप्रकाश चौटाला , हुकम सिंह और भूपेंदर सिंह हुडा तथा गैर जाटों में भगवत दयाल शर्मा ( ब्राहमन ) , राव बीरेंन्दर सिंह ( यादव ) , बनारसी दास गुप्ता ( बनिया )  भजन लाल ( बिशनोई ) एवं वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ( पंजाबी ) |

जाटों की पिछड़ती अर्थव्यवस्था , डगमगाती सामाजिक स्थिति तथा बेरोजगारी के अलावा वर्तमान  हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन का ताज़ा एवं सबसे ज्यादा चुभने वाला कारण रहा है भाजपा के कुरुक्षेत्र से सांसद राज कुमार सैनी का जाटों के प्रति आए दिन जहर भरे बयान देना , बार बार जाटों के बारे में औछी बातें कहना तथा जाटों के खिलाफ अन्य ओ बी सी जातियों को उकसा कर प्रतिद्वंद्वी फोर्स के रूप में खड़ा कर देना | इसी जहरीले माहौल का ही नतीजा है वर्तमान उग्र जाट आंदोलन , जिसमे 28 लोगों की जान चली गई , 200 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए , पैंतीस हज़ार करोड़ से अधिक संपति जलकर राख़  हो गई तथा सदा के लिए शांत हरियाणा में विभिन्न जातियों में विद्वेष के बीज अंकुरित हो गए |

सैनी के इस आचरण पर जाट विचारक रमेश राठी का कहना है-

“क्या पिछले डेढ़ वर्ष से सैनी के जहरीले बयान भाजपा सरकार एवं नेतृत्व को सुनाई नहीं दे रहे थे ? क्यों हरियाणा एवं केंद्र सरकार चुप्पी साधे रही ? बार बार मीडिया में दिये गए विद्वेषात्मक बयानों पर क्यों नहीं भाजपा ने नोटिस लिया ? क्यों नहीं सैनी को ऐसी बयान बाजी से रोका गया ?” भाजपा की इसी सुनकर भी अनसुनी कर देने वाली नीति के कारण ही जाटों में यह संदेश गया कि भाजपा प्रदेश में जाट गैर जाट की राजनीति करके जातीय बंटवारा करना चाहती है ताकि हमेशा के लिए इस जातीय फूट का फायदा उठाकर सत्ता हथियाती रहे | अगर जाटों का यह शक सही है तो बड़ी ही चिंता की बात है | परंतु शायद भाजपा यह भूल रही है कि हरियाणा का भाईचारा भले ही कुछ समय के लिए खटास में पड़ जाए ,परंतु कुछ समय के अंतराल के बाद हरियाणा के मेल जोल पूर्ण ताने बाने में यह कूटनीतिक चाल ठप्प होकर रह जाएगी |

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का हरियाणा के जाटों को आरक्षण देने की मांग का समर्थन कर देने से हरियाणा की जाट गैर जाट विभक्तिकरण की इस तथाकथित चाल को गहरा  सदमा लगेगा | इससे जहां हरियाणा का दलित जाटों के पक्ष में खड़ा हो जाएगा , वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में जाटों के घाव सहलाने का मायावती का प्रयास जाटों का विश्वास अर्जित करने में भी कामयाब रहेगा |

इसी मध्य हरियाणा के एक  पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्दर हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार वीरेंदर सिंह का एक कथित आडियो टेप भी प्रकाश में आया है , जिसमे वीरेंदर सिंह की आवाज़ में यह कहा बताया जा रहा है कि हमने रोहतक क्षेत्र में तो आंदोलन को ठीक चला दिया है , पर चौटाला के क्षेत्र में आंदोलन क्यों नहीं गति पकड़ रहा है ? अगर यह बात सही है कि जाटों के कंधों पर बंदूक रखकर कुछ राजनीतिज्ञ हरियाणा का माहौल खराब कर रहे हैं तो बहुत चिंता का विषय है और जाटों को भी किसी के बहकावे में आकर आंदोलन को अपने हाथों से निकालकर दूसरे के हाथों में नहीं जाने देना चाहिए था | जाटों के आंदोलन ने इतना उग्र रूप धारण  किया वह भी निंदा  करने लायक है | जाटों को भी अपना आंदोलन शांति पूर्वक ढंग से संचालित करना चाहिए था | इस आंदोलन में एक बात यह भी दिखलाई दी कि आंदोलन का संचालन किसी एक के नेतृत्व में नहीं चलाया गया | अपनी अपनी डफड़ी , अपना अपना राग दिखलाई पड़ रहा था |जिन अन्य जातियों ने जाटों का उग्र विरोध कर आग में घी डालने का काम किया वह भी किसी भी  ढंग से उचित नहीं ठहराया जा सकता | भले ही कोई समाज अपनी जायज बात को उठाने के लिए संवैधानिक ढंग से आंदोलन करे ,परंतु आंदोलनकरियों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा व उग्रवाद किसी भी व्यक्ति व समाज को नुकसान के सिवाय कुछ नहीं दे सकता |

अब क्या होगा ?

जाट आरक्षण की आग की लपेटों से झुलसी  भाजपा सरकार ने भले ही जाटों को शांत करने हेतु एकबारगी उनकी आरक्षण की मांग को मान लिया हो , परंतु वास्तविक स्थिति जस की तस लगती है | आरक्षण जाटों को मिल पाएगा , इसमे अभी भी संदेह है | आंदोलन समाप्ती हेतु मुख्यमंत्री खट्टर ने भले ही घोषणा कर दी कि जाटों की आरक्षण की मांग मान ली है तथा केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया है जो शीघ्रतम विभिन्न पक्षों को सुनकर जाट आरक्षण का फैसला देगी | हरियाणा विधान सभा में भी मार्च में होने वाले सत्र में हरियाणा सरकार जाटों को आरक्षण देने का बिल पारित करेगी |आंदोलन में मारे गए निर्दोष लोगों के परिवारों को दस दस लाख की वितीय सहायता तथा प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी | परंतु क्या खट्टर सरकार जो इस मुद्दे पर पहले ही विभाजित नजर आ रही है , जाटों को आरक्षण दिला पाएगी ?इसमे संदेह के बादल तो पहले ही दिन से उमड़ पड़े हैं | आंदोलन वापिस लेते ही खट्टर सरकार के एक मंत्री अनिल विज  ने खट्टर के फैसलों के विरोध में इस्तीफा तक दे दिया | हालांकि बाद में मुख्यमंत्री के समझाने  पर वे राजी हो गए | आंदोलन समाप्ती के दूसरे ही दिन खट्टर ने  भी पैंतरा बदल कर यह बयान दे दिया कि जाटों को आरक्षण तो दिया जाएगा परंतु ओ बी सी के 27 प्रतिशत कोटे को नहीं छेड़ा जाएगा |

क्योंकि जाट  27 प्रतिशत ओ बी सी में ही  हिस्सा मांग रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री खट्टर 27 प्रतिशत से इतर आरक्षण की बात कर रहे हैं , तो कैसे निकल पाएगा कोई बीच का रास्ता ? खट्टर सरकार के एक अन्य मंत्री करणदेव कंबोज  भी मुखर हो गए हैं –“ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि सरकार आरक्षण का यह विधेयक कैसे लाएगी और विधानसभा में कैसे पास कराएगी ? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट दो बार मना कर चुका है | हम सुप्रीम कोर्ट से तो ऊपर नहीं हो सकते |”

इतना तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार 27 प्रतिशत के भीतर तो जाटों को आरक्षण देना नहीं चाहती | अलग से 20 प्रतिशत का विशेष बैक्वार्ड श्रेणी के तहत आरक्षण देने का जो प्रस्ताव सरकार ने जाटों के सामने आंदोलन के दौरान ही रखा था उसे जाटों ने उसी समय अस्वीकार कर दिया था |क्योंकि पिछली काँग्रेस सरकार द्वारा 2014 में  दिया गया विशेष पिछड़े वर्ग में 10 प्रतिशत का आरक्षण का फैसला सुप्रीम कोर्ट में पहले ही 2015 में धराशायी हो चुका है | अब  हरियाणा में पहले ही 49 प्रतिशत आरक्षण है ,यदि अलग से 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो कैसे मान लिया जाए कि इस बार सुप्रीम कोर्ट उसे निरस्त नहीं करेगा ?

मामला जैसे थे की स्थिति में है तथा हालात  विकट हैं | जाटों के आरक्षण का सपना पूरा होता मुश्किल दिखाई  पड़ रहा है | अगर इस बार भी जाटों को ठगा गया तो हालात बिगड़ने की   काली रेखा किसी भी समय आकाश में दिखलाई दे सकती है | हाँ इतना अवश्य है कि राजनीति करने वालों ने तो अपना अपना वोट बैंक पुख्ता कर ही लिया है | आगे भविष्य के गर्भ में क्या निहित है , यह कोई नहीं जानता  |

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