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दलित कब जी सकेंगें स्वछन्द जीवन ?

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जग मोहन ठाकन, सर्वोदय स्कूल के पीछे , राजगढ़ , चूरू , राजस्थान !
मोब , ०७६६५२६१९६३

राजस्थान से जग मोहन ठाकन का समाचार लेख
दलित कब जी सकेंगें स्वछन्द जीवन ?
भले ही देश को आज़ाद हुए छह दशक से अधिक समय हो चुका हो , सरकार कितना ही दावा करे कि स्वंतत्र भारत में हर व्यक्ति को कानून के दायरे में अपने ढंग से जीने की स्वंतत्रता है , परन्तु वास्तविक धरातल पर आज भी दलित समुदाय पर वही पुराना दबंग वर्ग का कानून चलता है ! अभी अभी लोकतंत्र का चुनावी चरण पूरा भी नहीं हुआ है , मात्र वोट बैंक समझे जाने वाले दलित वर्ग पर दबंगों का डंडा फिर बरसने लग गया है ! शनिवार तीन मई की शाम का धुंधलका होते होते राजस्थान के झालावाड जिले में गाँव तीतरवासा में दलितों पर दबंगों का निरंकुश कहर एक बार फिर डंके की चोट पर कह उठा कि चाहे देश कितना ही स्वतंत्र क्यों न हो , चाहे सरकार लोकतंत्र के कितने ही उत्सव क्यों न मनाये , नियम कानून तो वही चलेंगें जो दबंगों को भायें ! प्राप्त समाचार के अनुसार शनिवार तीन मई को तीतरवासा गाँव में दलित परिवार के लोकेश मेघवाल की शादी में बिंदोरी निकासी को लेकर दबंगों ने अपना बहशीपण दिखाया ! फूलचंद मेघवाल के आरोप के अनुसार गाँव के दबंग वर्ग के राजेंदर पुजारी , शलेंदर राजपूत , तंवर सिंह ठाकर आदि ने दलितों को बिंदोरी न निकालने की धमकी दी और जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि तुम बिंदोरी नहीं निकालोगे तथा दुल्हे को घोड़ी पर भी नहीं बिठाओगे !
फूलचंद मेघवाल ने पुलिस को सूचित किया कि दलित परिवार के लोग जब रात्रि को बिंदोरी निकालने लगे तो मंदिर के पास पहुंचते ही दबंग व्यक्तियों ने अन्य बीस पचीस लोगों के साथ आकर दुल्हे को घोड़ी से उतार दिया और जाति सूचक शब्द बोलते हुए पथराव शुरू कर दिया , जिसमे दलित वर्ग के चार बच्चों को चोटें भी आई !

उपरोक्त घटना समाज के असली स्वरुप की बखिया उधेड़ने में पर्याप्त साक्ष्य है ! यह सही है कि पुलिस में केस भी दर्ज होंगें , कोर्ट कचहरी में भी मामले जायेंगे ,पर क्या न्याय मिलने तक दलित दबंगों का विरोध सह पायेंगें ? न्याय मिलना ही पर्याप्त नहीं है , अपितु त्वरित न्याय मिलना भी जरूरी है ! अतः सबसे पहले जरूरी है सामाजिक संरक्षण की , सरकार की तत्परता की , दलित समुदाय की जागरूकता की तथा ठोस एवं त्वरित कारवाई की ! दलितों को मुख्य धारा में लाने के और अधिक प्रयास करने होंगे ! आखिर कब मिलेगा उन्हें स्वछन्द जीवन जीने का अधिकार ?

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