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अगर भीतर घात नहीं हुई ,तो चुरू में कमल खिलना तय

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चूरू राजस्थान से जग मोहन ठाकन
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अगर भीतर घात नहीं हुई ,तो चूरू में कमल का खिलना तय
चूरू (जग मोहन ठाकन ) . पिछले लगातार तीन लोकसभाई चुनावों में जीत का सेहरा बंधाते आई भारतीय जनता पार्टी अब की बार भी चूरू लोकसभा क्षेत्र में कमल का फूल खिलाने में कामयाब हो सकती है , अगर भाजपा में ही भीतर घात न हुई तो ! यह आंकलन है क्षेत्र के प्रबुद्ध राजनैतिक पंडितों का ! १९७७ में पहली बार स्वंतत्र लोक सभा क्षेत्र बनाने से लेकर २००९ के चुनावों तक दस चुनावों में क्षेत्र में कांग्रेस केवल तीन बार ही जीत दर्ज करवा पाई है ! यहाँ से दौलत राम सहारन जनता पार्टी की लहर में १९७७ में पहली बार जीत हासिल करके १९८० तथा १९८९ में भी विजयी हुए थे ! १९८९ में उन्हें चन्द्र शेखर की सरकार में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री बनने का मौका मिला था ! इसके अलावा चूरू क्षेत्र के प्रतिनिधि को कभी भी केंद्र में मंत्री पद योग्य नहीं समझा गया ! कांग्रेस के मोहर सिंह राठोड ने १९८४ में एल के डी के दौलत राम सहारन को तथा १९९६ व १९९८ में कांग्रेस के नरेंदर बुडानिया ने भाजपा के राम सिंह कस्वां को पराजित कर कांग्रेस को विजय दिलाई थी ! यहाँ से वर्तमान भाजपा सांसद राम सिंह कस्वां १९९१ ,१९९९ २००४ तथा २००९ में भाजपा को जीत का तोहफा दे चुके हैं ! १९९१ से लगातार चार बार जीत व दो बार हार का सामना कर चुके भाजपा के कस्वां वर्तमान लोकसभा चुनावों में भी पुनः भाजपा की नाव पर सवार होकर संसद में जाने को आतुर हैं ! कस्वां की जनता में कम बोलने वाले व मृदु भाषी नेता की छवि रही है !
लोकसभा क्षेत्र में एक विशेष रिकॉर्ड यह भी रहा है कि १९७७ से लेकर अब तक गैर जाट उम्मीदवार केवल एक ही बार जीत हासिल कर पाया है ! चूरू लोकसभा क्षेत्र में आठ विधान सभा क्षेत्र नोहर , तारानगर , सरदारशहर , रतनगढ़ , सुजानगढ़ , चूरू , भादरा तथा सादुलपुर आते हैं ! दिसम्बर २०१३ में संपन्न विधानसभा चुनावों में आठ में से छह पर भाजपा तथा एक पर कांग्रेस के भंवर लाल शर्मा और एक पर बहुजन समाज पार्टी के मनोज न्यांगली ने जीत दर्ज की थी ! सादुलपुर विधान सभा से बहुजन समाज पार्टी के न्यांगली ने वर्तमान सांसद की पत्नी एवं भाजपा की पूर्व विधायक कमला कस्वां को हराकर जीत पाई थी ! पत्नी की इसी हार को मुद्दा बनाकर भाजपा में कस्वां विरोधी गुट कस्वां की सांसद टिकट कटवाने का प्रयास कर रहे हैं ! परन्तु चार बार पार्टी को बुरे दिनों में जीत दिलवाने वाले तथा पार्टी के वफादार सिपाही की टिकट काटना तो दूर टिकट काटने की सोचना ही पार्टी के लिए खतरे की घंटी सिद्ध हो सकता है ! टिकट कटवाने की मुहिम में जिले के एक मंत्री का नाम जनता में चर्चित है ! चर्चा तो यहाँ तक चल रही हैं कि इसी नेता ने कमला कस्वां की हार में एक विरोधी पार्टी के अपने सजातीय उम्मीदवार को मदद पहुंचा कर सपार्टी उम्मीदवार को हराने में महती भूमिका अदा की है ! इस चर्चा में कितनी सच्चाई है तथा पार्टी हाई कमांड विरोधी गुट को पार्टी हित के विरुद्ध जाकर कितनी तवज्जो देती है , यह तो लोकसभा चुनावों के परिणाम से ही पता चलेगा !
अभी तक प्रमुख राजनितिक पार्टियों भाजपा तथा कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है ! भाजपा टिकट के प्रबल दावेदारों में वर्तमान सांसद राम सिंह कस्वां , प्रदेश महामंत्री सतीश पूनिया तथा महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष सुशीला सहारण का नाम लिया जा रहा है ! सतीश पूनिया मूलरूप से चूरू जिला के सादुलपुर क्षेत्र के रहने वाले हैं तथा वर्तमान में जयपुर को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाये हुए हैं ! हाल के विधानसभा चुनावों में पूनिया जयपुर के एक विधान सभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर हार का सामना कर चुके हैं ! इससे पूर्व वे एक बार सादुलपुर विधान सभा क्षेत्र से भी विधान सभा में जाने के लिए असफलता के साथ चुनाव लड़ चुके हैं ! चूरू क्षेत्र में पूनिया गौत्र के वोटर काफी संख्या में हैं , परन्तु क्षेत्र के पुराने राजनितिक क्षत्रप इन्दर सिंह पूनिया , जयनारायण पूनिया , नन्दलाल पूनिया तथा दिसम्बर २०१३ विधान सभा चुनावो में कांग्रेस की उम्मीदवार व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी कृष्णा पूनिया कभी नहीं चाहेंगे कि क्षेत्र में कोई और दावेदार पनपे ! सुशीला सहारण हालांकि महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष है , परन्तु जिले में उनकी कोई विशेष पहचान या पकड़ नहीं दिखती है !
कांग्रेस के पास भी प्रमुख दावेदारों में रतन शर्मा तथा रफीक मंडेलिया का नाम लिया जा रहा है ! रतन शर्मा को धन बल पर टिकट मिलने का अंदाजा लगाया जा रहा है ! सरदारशहर से कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा ने कांग्रेसी नेताओं विशेषकर सी पी जोशी पर इस तरह के आरोप भी उछाले हैं ! अभी प्रेस व पब्लिक में भंवर लाल शर्मा ने खुलकर कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति की बखिया उधेडी है ! दूसरी तरफ कांग्रेस में भंवर लाल शर्मा विरोधी गुट का आरोप है कि शर्मा हमेशा इसी प्रकार की विद्रोहात्मक राजनीति करके फायदा उठाते रहे हैं और इस बार भी वो आक्रोश के बल पर अपने पुत्र अनिल शर्मा को कांग्रेस का टिकट दिलाना चाहते थे ! कांग्रेस के एक अन्य दावेदार रफीक मंडेलिया क्षेत्र से २००९ में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं तथा मात्र १२४४० मतों से पराजित हुए थे ! परन्तु राजनितिक विश्लेषकों का मत है कि यदि रफीक मंडेलिया को पुनः टिकट दिया जाता है तो इसका भाजपा को फायदा होगा , क्योंकि मोदी लहर के चलते गैर मुस्लिम वोटों में अधिकतर भाजपा के साथ जुड़ जायेंगे ! यदि रतन शर्मा को टिकट मिलता है तो ब्राह्मण मतदाता भाजपा की बजाय कांग्रेस का दामन थाम लेंगे ! क्षेत्र में ब्राह्मण समुदाय के लिए एक कहावत भी प्रचलित है “ पहले ब्राह्मण भाई , फिर कांग्रेस आई “ ! मंडेलिया की टिकट काटने पर मुस्लिम समुदाय के वोटों के खिसकने पर निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं कि चाहे मंडेलिया को टिकट मिले या ना मिले , मुस्लिम समुदाय को मोदी लहर को रोकने के लिए कांग्रेस को वोट देना ही होगा ! परन्तु सरदारशहर के कांग्रेसी नेता एवं विधायक भंवर लाल शर्मा , जिसकी ब्राह्मण समुदाय में पैठ बताई जा रही है , के बगावती तेवरों के चलते रतन शर्मा के साथ ब्राह्मण समुदाय के कितने वोट जुड़ते हैं ,यह तो आने वाले समय के ही गर्भ में छुपा हुआ है !
अभी एक दो दिन में स्पष्ट हो जायेगा कि किस नाव का किसको नाविक बनाया जाता है ,तब तक तो केवल किन्तु –परन्तु पर ही निष्कर्ष निकलते रहेंगे !
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