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hindi kavita bochharen

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कविता
ठण्डी ठण्डी बौछारें
जग मोहन ठाकन
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भादों की तपती उमस में ,
सावन का एहसास दिलायें ।
फुहार बरसती बौछारें,
ये ठण्डी ठण्डी बोछारें ।।
उदास हुए ये गुवार के पत्ते
मूंह लटकाये बाजर सिरटी ।
बौछारों की इक छुअन से
खिल खिल जाये खेत की मिटटी।
ऐसा सहलायें बौछारे ,
ये ठण्डी ठण्डी बौछारें ।।
रातों भेजे इनको न्यौता
आस लगाये तपता यौवन ।
दुगुने वेग से अगन बढायें
सौतन बन ये बौछारें ।
मरज्याणी ये बौछारें ,
ये ठण्डी ठण्डी बौछारें ।।
किसे निहारूं , किसे पुकारूं
सोचण दें ना बौछारें।
फुहार बरसती बौछारें
ये ठण्डी ठण्डी बौछारें ।।
जग मोहन ठाकन

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